पाल महायान बौद्ध धर्म के संरक्षक थे जिन्होंने 8 वीं से 12 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच पाटलिपुत्र से पूर्वी भारत पर शासन किया था। हालांकि पाल सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे, उन्होंने बौद्ध धर्म के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संरक्षण दिया।
1. शासकों की भूमिका: धर्मपाल और देवपाल ने बौद्ध धर्म को फलने-फूलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण: धर्मपाल ने प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की।
2. धर्मनिरपेक्ष चरित्र: हालांकि इस क्षेत्र के अधिकांश विषय हिंदू थे, पाल शासकों ने धार्मिक सहिष्णुता के दृष्टिकोण का पालन किया। इसने विचारों के शांतिपूर्ण आदान-प्रदान की अनुमति दी जिसने वज्रयान दर्शन को जन्म दिया।
3. संरक्षण: धर्मपाल ने एक बौद्ध लेखक हरिभद्र को संरक्षण दिया और उन्हें अपना गुरु बनाया। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वानों में अतिश, संतरक्षित, सराह, तिलोपा शामिल हैं।
4. बहाली के प्रयास: महिपाल प्रथम ने सारनाथ, नालंदा और बोधगया में पवित्र संरचनाओं के निर्माण और मरम्मत का आदेश दिया। देवपाल ने विक्रमशिला और सोमपुरा महाविहार का जीर्णोद्धार और विस्तार भी किया।
5. बौद्ध धर्म का प्रचार: पाल साम्राज्य के बौद्ध विद्वानों ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए बंगाल से दूसरे क्षेत्रों की यात्रा की। अतिश ने तिब्बत और सुमात्रा में प्रचार किया।
6. धर्म का प्रचार: देवपाल ने शैलेंद्र वंश के राजा बालपुत्रदेव के अनुरोध पर नालंदा मठ के निर्माण के लिए पांच गांव दिए।
पाल वंश ने बौद्ध मठों के फलने-फूलने और बिना किसी पूर्वाग्रह के दर्शन पर चर्चा करने के लिए वातावरण तैयार किया। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने इन विचारों को दुनिया भर में फैलाने में भी मदद की, एक विरासत छोड़कर जिसे हम आज भी देख सकते हैं।