Sunil Kumar Dhanwanta AIR-22 UPSC CSE 2021 Essay Writing Format Class Notes 4 You .
Subject- समस्याओं का सामना करना ही सही अर्थ में जीवन का सार है । (Essence of life is facing the difficulties )
संबोधन .................................................
समस्याएँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का स्वाभाविक अंग है हालाँकि समस्याओं की प्रकृति और तीव्रता अलग-अलग हो सकती है | स्वामी विवेकानंद ने कहा था-“जब आपके सामने समस्या न आए तो आप सुनिश्चित हो सकते हो कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हो |” किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन में समस्याएँ निश्चित रूप से आती हैं| लेकिन उन् समस्याओं के प्रति आपका दृष्टिकोण कैसा है उससे आपके जीवन की दशा और दिशा तय होती है | प्रथम श्रेणी में वो लोग आते है जो यह चाहते है कि उनके जीवन में कोई समस्या आए ही नहीं जबकि दूसरी श्रेणी के अंतर्गत वो लोग शामिल होते है जो समस्या को जीवन का अंग मानकर उनका साहस और कठोर मेहनत से सामना करते है |
आलसी जीवन अस्वाभाविक और नकारात्मक किस्म का है क्योंकि जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए जीवन की कटु चुनौतियों से टकराकर ही रास्ता निकालना पड़ता है | लौहा तभी श्रेष्ठ बनता है जब वह आग से तपकर निकलता है | शांति का नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजाई ,भारत के महान वैज्ञानिक और भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम,डॉ. भीमराव अंबेडकर इत्यादि का जीवन इस बात का प्रमाण है। असम की हिमा दास अत्यंत गरीब परिवार से होते हुए भी वैश्विक स्तर पर अनेक गोल्ड मेडल जीत सकी क्योंकि उसने समस्याओं का निडरता से सामना किया
जो व्यक्ति समस्याओं से जूझने का रास्ता जानता है,उसके लिए सामर्थ्य अर्जित करता है वो ही जीवन के हर क्षेत्र में बाजी मारता है क्योंकि समस्याएँ व्यक्ति के शिक्षक की भूमिका निभाती है जैसे किसी विद्वान ने कहा है,“The only way to overcome pain is to learn how to bear bear it.”
याद रखें कि भारत के महान राजनीतिज्ञ चाणक्य ने कहा था-“व्यक्ति को दूसरों की समस्याओं से भी सीखना चाहिए क्योंकि यदि स्वयं पर ही प्रयोग करते रहे तो जीवन कम पड़ जाएगा|” इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
यह धारणा वर्तमान में और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो गयी है जब हम कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी का सामना कर रहे हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति और देश चिंता और नीरसता का सामना कर रहा है | इसी समय एक सकारात्मक व्यक्ति ही सफलता प्राप्त कर सकता है | राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त कहते है –
“जितने कष्ट-कण्टकों में है, जिनका जीवन-सुमन खिला,
गौरव गन्ध उन्हें उतना ही, अत्र तत्र सर्वत्र मिला”
इसी का परिचय देते हुए हमारे वैज्ञानिकों ने इस महामारी के उपचार के लिए टीकों का विकास कर लिया है परंतु हमें प्रत्येक व्यक्ति को इस महामारी से लड़ने का शारीरिक और मानसिक सामर्थ्य प्रदान करना होगा ताकि भविष्य में ऐसी समस्या आने पर हम ओर अधिक मनोबल के साथ उनका सामना कर सकें क्योंकि इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में वो ही सफल हो सकता है जो समस्याओं से भागने के स्थान पर उनसे लड़ने की मनोवृत्ति और सामर्थ्य रखता हो | राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने काव्य ‘कुरुक्षेत्र’ में इसी मनोवृति का समर्थन किया है –
जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर! जो उससे डरते हैं,
वह उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं ।। ”
धन्यवाद !!!